द्रोही राजगुरु – tenali raman stories in hindi
द्रोही राजगुरु – tenali raman stories in hindi
द्रोही राजगुरु – tenali raman stories in hindi
द्रोही राजगुरु – tenali raman stories in hindi : तेनालीराम के सभी काम और प्रतिभा से विजयनगर के राजगुरु परेशान थे , क्योकि राजगुरु को हर कुछ दिन तेनालीराम की वजह से जुकना पड़ता था। इसी कारण वो राजदरबार में हास्य पात्र बनता था। राजगुरु तेनालीराम के पद , पत्तिभा एवं प्रतिष्ठा से जलते थे और तेनालीराम महाराज के मुर्त्युदंड से भी कई बार अपनी सुजबुझ से बच निकला हैं। इस लिए राजगुरु ने सोचा में स्वयं ही मौका देख कर तेनाली के प्राण ले लू। अपने कुटिल मन से तेनालीराम को मारने की योजना बनाई। यात्रा का बहाना करके विजयनगर से निकल गए। एक बहरूपिए के पास मदद मांगने के हेतु से जा पहुंचे।
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कुछ समय के बाद राजगुरु उस बहरूपिए के साथ रह कर भेष बदल ने में कुशल हो गए। राजगुरु जब महल वापस लौटे तभी अपनी योजना के आधीन बहरूपिए बन कर आए। उसने राजा कृष्ण्देवराय से अपना परिचय बताते हुए स्वयं को एक कलाकार बताया। महाराज ने कहा तुम्हे सबसे अच्छा क्या आता हैं , बहरूपिए ने महाराज से कहा “मुझे शेर का स्वांग बहुत अच्छी तरह से आता है परंतु उसमे खतरा हैं”। कोई घायल तो कोई जान भी गवा सकता हैं। उसी के साथ बहरूपिए ने अपनी शर्त महाराज के सामने रखते हुए कहा की , मेरा एक खून आपको माफ़ करना होगा। महाराज ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
‘’और एक शर्त महाराज , ऐसा कह कर महाराज के सामने शर्त रखी। मेरी कलाकारी एवं स्वांग के दौरान पंडित तेनालीराम भी राजदरबार में हाज़िर रहें...
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