कीमती उपहार - Tenali Rama Hindi Story
कीमती उपहार - Tenali Rama Hindi Story
लड़ाई जीतकर राजा कृष्णदेव राय ने विजय उत्सव मनाया। उत्सव की समाप्ति पर राजा ने कहा- ‘लड़ाई की जीत अकेले मेरी जीत नहीं है-मेरे सभी साथियों और सहयोगियों की जीत है। मैं चाहता हूँ कि मेरे मंत्रिमंडल के सभी सदस्य इस अवसर पर पुरस्कार प्राप्त करें। आप सभी लोग अपनी-अपनी पसंद का पुरस्कार लें। परंतु एक शर्त है कि सभी को अलग-अलग पुरस्कार लेने होंगे। एक ही चीज दो आदमी नहीं ले सकेंगे।’ यह घोषणा करने के बाद राजा ने उस मंडप का पर्दा खिंचवा दिया, जिस मंडप में सारे पुरस्कार सजाकर रखे गए थे। फिर क्या था! सभी लोग अच्छे-से-अच्छा पुरस्कार पाने के लिए पहल करने लगे। पुरस्कार सभी लोगों की गिनती के हिसाब से रखे गए थे।
अतः थोड़ी देर की धक्का-मुक्की और छीना-झपटी के बाद सबको एक-एक पुरस्कार मिल गया। सभी पुरस्कार कीमती थे। अपना-अपना पुरस्कार पाकर सभी संतुष्ट हो गए।अंत में बचा सबसे कम मूल्य का पुरस्कार-एक चाँदी की थाली थी।
यह पुरस्कार उस आदमी को मिलना था, जो दरबार में सबके बाद पहुँचे यानी देर से पहुँचने का दंड। सब लोगों ने जब हिसाब लगाया तो पता चला कि श्रीमान तेनालीराम अभी तक नहीं पहुँचे हैं। यह जानकर सभी खुश थे।
सभी ने सोचा कि इस बेतुके, बेढंगे व सस्ते पुरस्कार को पाते हुए हम सब तेनालीराम को खूब चिढ़ाएँगे। बड़ा मजा आएगा। तभी श्रीमान तेनालीराम आ गए। सारे लोग एक स्वर में चिल्ला पड़े, ‘आइए, तेनालीराम जी! एक अनोखा पुरस्कार आपका इंतजार कर रहा है।’ तेनालीराम ने सभी दरबारियों पर दृष्टि डाली।
सभी के हाथों में अपने-अपने पुरस्कार थे। किसी के गले में सोने की माला थी, तो किसी के हाथ में सोने का भाला। किसी के सिर पर सुनहरे काम की रेशम की पगड़ी थी, तो किसी के हाथ में हीरे की अँगूठी। तेनालीराम उन सब चीजों को देखकर सारी बात समझ गया। उसने चुपचाप चाँद की थाली उठा ली. उसने चंडी की उस थाली को मस्तक से लगाया और उस पर दुपट्टा ढंक दिया, ऐसे की जैसे थाली में कुछ रखा हुआ हो।
राजा कृष्णदेव राय ने थाली को दुपट्टे से ढंकते हुए तेनालीराम को देख लिया। वे बोले , "तेनालीराम, थाली को दुपट्टे से इस क्यों ढंक रहे हो ?"
"क्या करू महाराज, अब तक तो मुझे आपके दरबार में हंमेशा अशर्फियों से भरे थाल मिलते रहे हैं। यह पहला मौका हैं कि मुझे चांदी की थाली मिली हैं. में इस थाल को इसलिए दुपट्टे से ढंक रहा हु ताकि आपकी बात कायम रहे। सब यही समझे की तेनालीराम को इस बार भी महाराज ने थाली भरकर अशर्फिया पुरस्कार में दी हैं।
महाराज तेनालीराम की चतुराई-भरी बातो से प्रसन्न हो गए। उन्होंने गले से अपना बहुमूल्य हार उतरा और कहा,, "तेनालीराम, तुम्हारी आज भी खली रहेगी। आज उसमे सबसे बहुमूल्य पुरस्कार होगा। थाली आगे बढ़ाओ तेनालीराम !"
तेनालीराम ने थाली राजा कृष्णदेव राय के आगे कर दी। राजा ने उसमे अपना बहुमूल्य हार दाल दिया। सभी लोग तेनालीराम की बुद्धि का लोहा मान गए। थोड़ी देर पहले जो दरबारी उसका मजाक उदा रहे थे , क्युकी सबसे कीमती पुरस्कार इस बार भी तेनालीराम को ही मिला था।
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Labels: hindi kahaniya
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