अपमान का बदला - Hindi story of Tenali Rama
अपमान का बदला - Tenali Rama Hindi Story
तेनालीराम ने कहा तह था कि राजा कृष्णदेव राय बद्धिमानो व गुणवानो का आदर करते हैं। उसने सोचा, क्यों न उनके यह जाकर भाग्य आज़माया जाए। लेकिन बिना किसी सिफारिश के राजा के पास जाना टेढ़ी खीर थी। वह किसी ऐसे अवसर की तक में रहने लगा। जब उसकी भेट किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से हो सके।
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इसी चीज तेनालीराम का विवाह दूर के नाते की एक लड़की मगम्मा से हो गया एक वर्ष बाद उसके घर बीटा हुआ। उन्ही दिनों राजा कृष्णदेव राय का राजगुरु मंगलगिरी नामक स्थान गया वहा जाकर रामलिंग ने उसकी बड़ी सेवा की और अपनी समस्या कह सुनाई।
राजगुरु बहुत चालक था उसने रामलिंग से खूब सेवा करवाई और लंबे-चौड़े वायदे करता रहा। रामलिंग अर्थात तेनालीराम ने उसकी बातो पर विश्वास क्र लिया और राजगुरु को प्रसन्न रखने के लिए दिन-रत एक कर दिया राजगुरु ऊपर से तो चिकनी-चुबड़ी बाते करता रहा,लेकिन मन-ही-मन तेनालीराम से जलने लगा।
उसने सोचा की इतना बुद्धिमान और विद्वान् व्यक्ति राजा के दरबार में आ गया तो उसकी अपनी किम्मत गिर जाएगी, पर जाते समय उसने वायदा किया -"जब मुझे मुझे लगा की अवसर उचित हैं, में राजा से तुम्हारा परिचय करवाने के लिए बुलवा दूंगा। " तेनालीराम राजगुरु के बुलावे की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगा, लेखिन बुलावा न आना था और न ही आया।
लोग'इससे हसकर पूछते, 'क्यों भाई रामलिंग, जाने केलिए सामान बांध लिया ना ? कोई कहता, मैंने सुना है की तुम्हे विजयनगर जाने के लिए राजा ने विशेष दूत भेजा हैं। लेहिं उसका मन राजगुरु से उठता गया।तेनालीराम ने बहुत दिन एक इस आशा में प्रतीक्षा की कि राजगुरु उसे विजयनगर बुलवा लेगा। अंत में निराश होकर उसने फैसला किया कि वह स्वयं ही विजयनगर जाएगा। उसने आपना घर और घर का सारा सामान बेचकर यात्रा का सर्च जुटाया और माँ, पत्नी तथा बच्चे को लेकर विजयनगर के लिए खाना हो गया।
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यात्रा में जहा रूकावट आती, तेनालीराम राजगुरु के नाम ले देता, कहा, में उनका शिष्य हु। उसने माँ से कहा ,"देखा "? जहा राजगुरु का नाम लिया गया, मुश्किल हल हो गई। व्यक्ति स्वयं चाहे जैसा भी हो , उसका नाम उचा हो तो सारी बढ़ाए अपने आप दूर होने लगती हैं। मुझे भी अपना नाम बदलना ही पड़ेगा।
राजा कृष्णदेव राय के प्रति सम्मान जताने के लिए मुझे भी अपने नाम में उसके नाम का कृष्ण शब्द जोड़ लेना चाहिए। आज मेरा नाम रामलिंग की जगह रामकृष्ण हुआ। बेटा मेरे लिए तो दोनों नाम बराबर हैं। में तो अब भी तुझे राम पुकारती हु, आगे भी यही पुकारूंगी माँ बोली। कोडवीड़ नामक स्थान पर तेनालीराम की भेट वहा के राज्य प्रमुख से हुई , जो विजयनगर के प्रधनमंत्री का संबंधी था। उसने बताया की महाराज बहुत गुणवान,विद्वान और उदार हैं, लेकिन उन्हें कभी कभी जब क्रोध आता हैं तो देखते ही देखते सीर धड़ से अलग कर दिए जाते हैं. जब तक मनुष्य खतरा मोड़ न ले, वह सफल नहीं हो सकता में अपना सर बचा सकता हु।
तेनालीराम के स्वर में आत्मविश्वास था. राज्यप्रमुख ने उसे यह भी बताया कि प्रधानमंत्री भी गुणी व्यक्ति का आदर करते हैं, ऐसे लोगो के लिए उस्कउसके यह स्थान नहीं हैं। चार महीने की लंबी यात्रा के बाद तेनालीराम अपने परिवार के साथ विजयनगर पंहुचा। वह की चमक-दमक देखकर तो वह दांग ही रह गया।
चौड़ी-चौड़ी सड़के, भीड़भीड़, हाथी-घोड़े, सजी हुई दुकाने और शानदार इमारते - यह सक उसके लिए नई चीजे थी। उसने कुछ दिन ठहरने क़े लिए वहा एक परिवार से प्रार्थना की। वहा अपनी माँ, पत्नी और बच्चो को छोड़कर वह राजगुरु के यहा पंहुचा वहा तो भीड़ का ठिकाना ही नहीं था।
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राजमहल के बड़े-से-बड़े कर्मचारी से लेकर रसोइया एक वह जमा थे। नौकर-चाकर भी कुछ काम न थे। तेनालीराम ने एक नैकर को संदेश देकर भेजा कि उससे कहो तेनाली गांव से राम आया हैं। नौकर ने वापस आकर कहा , "राजगुरु ने कहा कि वह इस नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानते।"
तेनालीराम बहुत ही हैरान हुआ , वह नौकरो को पीछे हटाता हुआ सीधे राजगुरु के पास पंहुचा, "राजगुरु आपने मुझे पहचाना नहीं? में रामलिंग हु, जिसने मंगलगिरि में आपकी सेवा की थी"। राजगुरु भला उसे कब पहचाना चाहता था। उसने नौकरो से चिल्लाकर कहा,...
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